दौड़ते-भागते शरीर का एकदम से लडखडा जाना .
न जाने कितने नकारात्मक विचारों को जन्म देता है .
कैसी-कैसी ढेरों कल्पनाएँ वह क्षण में कर लेता है .
कभी टी.बी, हार्ट एटेक, मधुमेह या फिर कैंसर !
वैसे तो मनुष्य आत्मिक बल से जीता है ....
अस्वस्थ शरीर इस बल को तोड़ने का प्रयास भर है .
और जो इसके फेर में आ गया, उसे शंका ने जकड लिया .
सच शरीर के एक अंग का बेजान होना ...
कितने ही स्वस्थ अंगों को बेजान करता है !
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