रविवार, 25 जुलाई 2010
भिखारी
कुछ माँगना क्या इतना आसान होता है ?
अपने अभिमान को गिराना...
तपती धूप में घण्टों राह चलते
लोगों के सामने गिड़गिड़ाना
इतने पर भी कुछ न पाना !
क्या इतना आसान होता है ?
विष्णु ने भी माँगते समय
बावनावतार रूप धारण किया था !
....राजा बली के सामने बौने बने !
....ऐसे में किसी से कुछ माँगना,
बड़े साहस का काम होगा !
हम राह चलते इन भिखारियों को
हकारत की निगाह से देखते है,
पर ये याद रहे कि...
जब ये कुछ माँगते हैं,
तो कर देते है- हमें ईश्वर !
इसीलिए जब ही कोई कुछ माँगें !
....सोचे कितना बड़ा कर गया- 'हमें'
ऐसा मैं मानती हूँ !
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1 टिप्पणी:
जब ये मांगते हैं कर देते हैं ईश्वर ...
कविता अच्छी है ...
मगर मुझे भी कुछ कहना है ..
जो छोटे छोटे बच्चे इनके साथ दरवाजे पर , सड़क पर , मंदिर के पास इनके सुर में सुर मिलकर भीख माँगा करते हैं ...उनके लिए यह किसी भी भाव से जुड़ा नहीं है ...ना आत्मग्लानि , ना स्वाभिमान , !
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