समतल नदी में
दलदल !
शायद आप भी
अचंभित हो जाएँ !
पर ऐसा सच में है !
ये दलदल आपको लिल
लेगा !
इसकी ख़बर भी न
होगी !
जितना आप दूर
भागों...
ये और भी
करीब-गहराता आएँ !
ये बड़ी आत्मियता
से शिकार बनाता !
और शिकार कर फिर
यथास्थित
कोई शक भी न कर
पाएँगा
इतना
बुद्धिमानी...!
शायद हम इस कला
में निपुण नहीं...
इसलिए तो इसकी
आलोचना...
नहीं नहीं आम
आदमी नहीं बोल सकता
अपनी पीड़ा का
दर्द नहीं खोल सकता !
भला सुनेगा कौन ?
बहुमत की राजनीति
है भई !
बहुमत किसका ?
गुंगे, बेहरे, अनदेखे का...!
अकेला आदमी पागल
अरस्तु ने सही
कहा था...!