संवेग
मन की सूक्ष्म अनुभूतियों का कंपन! अपने प्रस्फुटित रूप में!
गुरुवार, 8 जुलाई 2010
समाधि
कितनी बार
जाने कितनी बार
समझाया इस बावले मन को,
सुनता ही नहीं
बहरा हो जैसे.
तुमसे मिली
तो सदा को बहरी हो गई मैं सचमुच.
दुनिया क्या क्या कहती है जाने
पर मुझे कुछ सुनता ही नहीं.
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