मेरा सपना कितना छोटा!
अपने मन का कर जाना...
लेकिन क्या अपने मन का करना आसान होता ?
मन तो न जाने कैसी-कैसी उड़ान भरता !
क्या अपने जीवन में ऐसी एक भी उड़ान भरी.. ?
वैसे कहने में सब कितना अच्छा लगता !
पर हकीकत से सामना होते ही सब चीत !
दुनिया बेड़िया डालती या मन ही मर जाता ?
मन जिस सपने की ओर भागता ...
हाँ, पूरा भी हो सकता है !
लेकिन मन और स्वप्न दोनों के बीच ऐसा कुछ हैं...!
जो पूरी होने नहीं देता प्रक्रिया !
तब ही सच जाना, अपने लिए जीती तो...!
पूरे हो गए होते, देखें सपने !
मगर ऐसा क्या है, जो जुड़कर मेरा सब खो लेता हैं ?
यहाँ तक की मेरे सपने भी चुरा लेता !
6 टिप्पणियां:
welcome
बलविंदर जी, आपके ब्लॉग पर पहली बार आया। अच्छा लिखती हैं आप। जारी रखें। मेरी शुभकामनाएं !
सुभाष नीरव
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शानदार अभिव्यक्ति, लिखना जारी रखें! संवेनाओं को मरने नहीं दें दुनिया किसी को खुश नहीं देख सकती! यह आज की सबसे बड़ी विडम्बना है, लेकिन यदि कुछ पाना है तो अपनी बात बोलनी ही होगी, क्योंकि बोलोगे नहीं तो कोई सुनेगा कैसे?
शुभकामनाओं सहित।
आपका
-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा निरंकुश
सम्पादक-प्रेसपालिका (जयपुर से प्रकाशित पाक्षिक समाचार-पत्र) एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) (जो दिल्ली से देश के सत्रह राज्यों में संचालित है।
इस संगठन ने आज तक किसी गैर-सदस्य, सरकार या अन्य किसी से एक पैसा भी अनुदान ग्रहण नहीं किया है। इसमें वर्तमान में ४३६६ आजीवन रजिस्टर्ड कार्यकर्ता सेवारत हैं।)। फोन : ०१४१-२२२२२२५ (सायं : ७ से ८) मो. ०९८२८५-०२६६६
E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in
सपने के माध्यम से उजागर की गई मन की तरंगे
"मन की सूक्ष्म अनुभूतियों का कंपन" को सटीक और सार्थक सिद्ध करती हुई - "संवेग" पर आना अच्छा लगा
इस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
अच्छा लिखा है आपने। विषय का विवेचन और भाषिक संवेदना प्रभावित करती है।
मेरे ब्लाग पर राष्ट्रमंडल खेलों में हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देने के संदर्भ में अपील है। उसे पढ़ें और अपनी प्रतिक्रिया देकर बताएं कि राष्ट्रमंडल खेलों में हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देने की दिशा में और क्या प्रयास किए जाएं।
मेरा ब्लाग है-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
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