शनिवार, 4 मई 2013

दलदल

समतल नदी में दलदल !
शायद आप भी अचंभित हो जाएँ !
पर ऐसा सच में है !
ये दलदल आपको लिल लेगा !
इसकी ख़बर भी न होगी !
जितना आप दूर भागों...
ये और भी करीब-गहराता आएँ !
ये बड़ी आत्मियता से शिकार बनाता !
और शिकार कर फिर यथास्थित
कोई शक भी न कर पाएँगा
इतना बुद्धिमानी...!
शायद हम इस कला में निपुण नहीं...
इसलिए तो इसकी आलोचना...
नहीं नहीं आम आदमी नहीं बोल सकता
अपनी पीड़ा का दर्द नहीं खोल सकता !
भला सुनेगा कौन ?
बहुमत की राजनीति है भई !
बहुमत किसका ?
गुंगे, बेहरे, अनदेखे का...!
अकेला आदमी पागल

अरस्तु ने सही कहा था...!

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