शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

मनोग्रंथी

एक समय था जब धन्नालाल अपनी संतानों से बड़ी आशाएँ रखता था, उनमें भी ख़ास कर बड़ी बेटी से उसे बड़ी उम्मीद थी ! हालाँकि बचपन में ही सभी को बड़े ही कड़े अनुशासन में रखा गया था, पर बाहर के माहौल व जिंदगी को देखकर बड़ी बेटी में बचपन की मनोग्रंथियों का विकास एक बगावती रूप में उभरकर आया। बड़ी बेटी का नकारात्मक फैसला ही मानो संपूर्ण परिवार की मर्यादा, एकता, शांति को खण्डित कर गया। माता-पिता और बच्चों के बीच की सार्थक संवादहीनता में साबूत कोई न बच सका ! जहाँ देखों दरारें ही दरारें.....

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