जिंदगी में आना
दो वक्त का ख़ाना
फिर सब भूलाना
वापस चले जाना।
तेलंगाना का होना
ये है कैसा रोना
राजनीति का खिलौना
जनता का कभी न होना।
दर्द का आना
जैसे हो फसाना
कभी इधर आना
कभी उधर जाना
और कभी न हो ठिकाना !
आँखों का मोल बड़ा
जो न कहा वह गढ़ा
न कहकर कुछ मढ़ा
जिसे ले तू अढ़ा!
पानी न होता
तो फिर कैसा गोता !
कपड़े कैसे धोता
इंसान कैसे होता !
फूल का खिलना
जैसे तुमसे मिलना
कली का टूटना
जैसे तुम्हारा रूठना !
दूर से मुसाफ़िर आया
आँखों में कई सपने लाया
हमने उसे बडा शताया
पर आख़िर में वह बड़ा भाया !
शब्दों के बिम्ब
क्यूँ हो गए पलछिन
जो रहते थे शब्दों से अभिन्न
आज है छिन्न-भिन्न !
साक्षात्कार !
किसका-किससे ?
मेरा जिंदगी से,
या जिंदगी का मुझसे ?
आख़िर में क्या फ़र्क पड़ता ?
दोनों तरफ से तो मैं केन्द्र में अड़ता ....!
4 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...बधाई
पानी न होता
तो फिर कैसा गोता !
कपड़े कैसे धोता
इंसान कैसे होता !
बहुत सुन्दर
sunder muktak.
शब्दों के बिम्ब
क्यूँ हो गए पलछिन
जो रहते थे शब्दों से अभिन्न
आज है छिन्न-भिन्न !
साक्षात्कार !
किसका-किससे ?
मेरा जिंदगी से,
या जिंदगी का मुझसे ?
बेहतरीन, वाह !!!
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