गुरुवार, 3 नवंबर 2011

गर्भ में वह-1


न जाने कौन है वह !
न मुझे उसकी पहचान !
बातें करते डरती हूँ
पता नहीं क्या माँग ले ?
कैसे रहता होगा-वह ?
असल बरदाश्त का पुतला है !
कभी इस बात को सोच सहम जाती हूँ !
कितना अपना-सा लगते हुए...
एक ही पल में पराया लगे !
मैंने कोई सपना नहीं संजोया !
उसके आने के लिए....!
शायद ये ज़ायदती है !
ये जानकर भी अंजान होना होगा !
क्योंकि वह बहुत बड़ा रहस्य है !
मेरे गर्भ में जो पल रहा है !
उसके आदि-अंत से बेख़बर
मैं सब कुछ को विस्मृत कर देती हूँ !
इसी में शायद सुकून है !

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