मंगलवार, 19 जुलाई 2011

अपनापन

रेणु ने जब बचपन के अपने अकेलेपन व असुरक्षा भाव को समझा तो मन ही मन वह फैसला कर चुकी थी कि शायद उसके किसी से हमदर्दी व अपनेपन के कारण ही वह भी उसकी एवज़ में अपना खालीपन भर पायेंगी। धीरे-धीरे समय गुजरता गया रेणु की बेचैनी भी उसके साथ दुगुनी हुई। अब स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी का आधा-अधूरा ज्ञान उसे अपने को समझने के लिए दुस्साहसी बनाने लगा। लेकिन उसके उस दुस्साहस में भी काफी भोलापन, ईमानदारी थी। जब कोई बिना दिमाग का इस्तेमाल करे केवल दिल ही की सुनता है तो बहुत से ख़तरे बढ़ जाते है। रेणु के साथ भी ऐसा ही हुआ, जब जाने-अनजाने उसने अपनी सीमा रेखा पार की तो फिर क्या था एक के बाद एक वह सभी सीमाएँ पार करती चली गई। आख़िर में उसे जो हासिल हुआ उसे दुनिया का वह इंसान तो कतई नहीं समझ सकता, जो कुछ भी करने से पहले उसके परिणाम को सोच लेता है। सच इस अपनेपन की कहानी ने रेणु को जाने-अनजाने दुनिया के एक रहस्यमय चेहरे से रू-ब-रू कर दिया।

5 टिप्‍पणियां:

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

अच्छी सीख....

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

भोलापन... ईमानदारी.... सब बातें हैं बातों का क्या!!!!!!

बलविंदर ने कहा…

@ आदरणीय चन्द्रमौलेश्वर जी आपने बहुत ही सही कहा कि भोलापन, ईमानदारी....आदि आदि वास्तव में तो सब बातें ही है - सच परंतु इन शब्दों से ही शायद हम अपने को दिलासा देकर एक भ्रम पैदा कर जीने की ओर पुनः अग्रसर हो जाते है। ऐसा मेरा मानना है। टिप्पणी करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद जिससे ही भोलापन, ईमानदारी जैसे शब्दों की भी पोल खुल गई।

बलविंदर ने कहा…

@ आदरणीय चन्द्रमौलेश्वर जी आपने बहुत ही सही कहा कि भोलापन, ईमानदारी....आदि आदि वास्तव में तो सब बातें ही है - सच परंतु इन शब्दों से ही शायद हम अपने को दिलासा देकर एक भ्रम पैदा कर जीने की ओर पुनः अग्रसर हो जाते है। ऐसा मेरा मानना है। टिप्पणी करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद जिससे ki भोलापन, ईमानदारी जैसे शब्दों की भी पोल खुल गई।

डॉ.बी.बालाजी ने कहा…

सीमा रेखा लाँघना शायद किसी को भी रास नहीं आएगा. चाहे रेणु हो या और कोई.

अपने दोस्तों में एक कहावत चलती है कि 'आधी होशियारी जान को खतरा' इसलिए कोई भी काम करने से पहले पूरी जान कारी रखना बेहद जरुरी हो जाता है. विशेषकर जब तब कोई ईमानदारी से काम करना चाहता हो.

अच्छी कहानी. बधाई.