मंगलवार, 25 जनवरी 2011

पुकार

आज न जाने क्यूँ
उदास और प्रसन्न
दोनों क्रिया साथ
हुई !
ये किसी लड़ाई की
हार-जीत नहीं
बस अब तक प्रयास
की एक नियति
पाने का शायद भ्रम !
हो सकता है !
भ्रम इसलिए  की वे
टूट ही जाता है आगे !
इसके बाद आगे
सोच रूक गई
दिल ने कहा...
अब और फैसले नहीं
जिंदगी के प्लस-माइंस नहीं !
आखिर कब तक...
ये चलता रहेगा
पता नहीं पर
आज तो कुछ
थम गया है !
कल का कल देखेंगे !
चीख-चीख कर
कहती है अंदर की पुकार !
क्योंकि पुकार बदलती
हर क्षण-हर पल
अपना पेहरावा
बिना जाने
अंजाने !
फिर एक नई पुकार का
सिलसिला
बदस्तूर जारी रहता...



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