मंगलवार, 20 जुलाई 2010

आज की औरत


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी


पुरूष से चारगुना आगे हैं - 'औरत' !
हर जिम्मेदारी उठा रही हैं - 'औरत' !
पैसा कमाने के चक्कर में अपने को जान रही हैं -'औरत' !
पुरूष की चलाकी जानकर भी और-और काम कर रही हैं- 'औरत' !
सच यह सदी औरतों की ही हैं !
क्योंकि उसी ने कई क्षेत्रों में छलांग लगाई हैं !
उसने अपनी पहचान का विकल्प खोज लिया...!
जाने-अनजाने पुरूष ने औरत को अस्त्र थमा दिया !
वैसे आज औरत सब कुछ मनवा ले रही हैं !
अब उसके सारे भ्रम टूट गए हैं !
वे अपने को पहचान चुकीं हैं !
लेकिन पुरूष को अभी अपने को और पहचानना हैं !
दोनों को मिलकर ही दुनिया सजाना हैं !

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