जिसका चुपके से इंतज़ार,
उसी के आने से बेख़बर
जब उसका आना, जाना !
तो अपने को पहचाना !
पर मेरी ख़ुशी किसका अफ़साना ?
क्योंकि मुझे तो अपने को बिसराना !
फिर मेरी ख़ुशी का क्या ?
बात सुन सहम गई !
फिर ज़िद में आगे हुई !
बहुत से सवाल-ज़वाब के साथ !
पर डर हर पल बढ़ता गया !
कि जिसने अपने को न जाना
दूसरे को पहचान देगा-क्या ?
इसी द्वन्द्व में खड़ी हूँ !
फिर भी डर-डर लड़ी हूँ !
उसी के आने से बेख़बर
जब उसका आना, जाना !
तो अपने को पहचाना !
पर मेरी ख़ुशी किसका अफ़साना ?
क्योंकि मुझे तो अपने को बिसराना !
फिर मेरी ख़ुशी का क्या ?
बात सुन सहम गई !
फिर ज़िद में आगे हुई !
बहुत से सवाल-ज़वाब के साथ !
पर डर हर पल बढ़ता गया !
कि जिसने अपने को न जाना
दूसरे को पहचान देगा-क्या ?
इसी द्वन्द्व में खड़ी हूँ !
फिर भी डर-डर लड़ी हूँ !